Chachi Ke Saath Suhagdin Manaya

Deep punjabi 2017-06-23 Comments

नमस्कार दोस्तों आपका अपना दीप पंजाबी एक बार फेर आपकी सेवा में एक नई कामुक फ्री सेक्स स्टोरीज हिन्दी चुदाई कहानी लेकर हाज़िर है। सो उम्मीद करता हूँ, पिछली कहानियो की तरह इसे भी ढेर सारा प्यार दोगे। सो आपका ज्यादा वक्त जाया न करते हुये, सीधा आज की कहानी पर आते है। जिसमे आप पढ़ेंगे के कैसे एक भतीजे ने अपनी चाची के साथ सुहाग दिन मनाया।

मेरा एक पड़ोस में मित्र है। जिसका नाम प्रदीप है। हम स्कूल टाइम से ही हमेशा साथ में ही खाते, पीते, खेलते और पढ़ते आये है। पढ़ाई के बाद मेरी शादी हो गई और प्रदीप आगे की पढ़ाई के लिए अपने किसी रिश्तेदार के पास शहर चला गया। कई साल बाद वो इंजीनियरिग का कोर्स करके वापस गांव आया हुआ था।

एक दिन मैं बिजली का बिल भरने, बिजली घर गया हुआ था। वहाँ पर प्रदीप भी मुझसे पहले लाइन में खड़ा था। लाइन बड़ी होने की वजह से मैं उसे अपना बिल पकड़ा कर, खुद उसके वापस आने का बाहर इंतज़ार करने लगा। कुछ ही देर बाद वो बिल भरकर बाहर आया। हम दोनों बाइक से एक होटल की तरफ चल दिए।

वहां बैठकर हमने कुछ देर आराम किया और खाया पिया और काफी समय दूर रहने की वजह से ढेर सारी बाते करी।

ये कहानी उसी ने ही बातो बातो में बताई। सो आगे की कहानी उसी की ही ज़ुबानी…

नमस्कार मित्रो मेरा नाम प्रदीप, उम्र 30 साल, श्री मुक्तसर साहिब, (पंजाब) का रहने वाला हूँ।

मेरे पिता जी राज मिस्त्री का काम करते है। उन्होंने काम काज के लिए बहुत से लड़के लेबर के तौर पे रखे हुए है। उनमे से मेरे पड़ोस में एक लड़का जगदीश (32), जो रिश्ते में मेरा चाचा लगता है, वो भी एक मिस्त्री है। उसकी शादी को लगभग 15 साल हो गए है। उसकी पत्नी रेखा यानि की मेरी चाची एक हॉउस वाइफ है। उसकी उम्र यही कोई 30 साल होगी। वो दो बच्चों की माँ भी है। उसे मैं चाची की बजाये आंटी ही कहता हूँ।

अक्सर पड़ोस के होने की वजह और पापा के साथ काम करने की वजह से, कई बार चाचा का टिफन लेने जाना या कई बार और छोटे छोटे काम की वजह से हमारा एक दूजे के घरों में आना जाना लगा ही रहता है।

एक दिन की बात है के मेरे पापा और चाचा पूरी लेबर को साथ लेकर पास वाली ढाणी में ज़मीदार के घर उनकी कोठी को पलस्तर करने गए हुए थे। किसी वजह से चाचा का टिफन तैयार नही हो पाया। तो करीब 10 बजे मुझे चाचा का फोन आया।

चाचा — हलो, प्रदीप आज मैं घर से अपना टिफन लेकर नही आया। सो तुम घर पे जाकर अपनी आंटी को बोल दो, वो तुम्हे टिफन तैयार करके दे देगी और तुम मुझे पास की ढाणी में पकड़ा जाओ। वरना मैं सारा दिन भूखा मर जाऊंगा।

मैं — कोई बात नही चाचा, अभी जाता हूँ और आपका टिफन लेकर आपके पास पहुँचता हूँ।

फोन काटते ही मैं चाचा के घर गया। गली वाला दरवाजा अंदर से बन्द था। मैंने दरवाजा खटखटाया तो थोड़ी देर बाद आंटी रेखा ने दरवाजा खोला। उसका सिर उसकी चुन्नी से ही बंधा हुआ था। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

आंटी — आओ प्रदीप, आज इस वक्त कैसे आना हुआ ?

मैं — नमस्ते आंटी, आज चाचा अपना टिफन लेकर नही गए। तो उन्होंने अपना टिफन लेने भेजा है।

वो — नमस्ते, अच्छा चलो आओ अंदर आ जाओ, उनका टिफन अभी तैयार कर देती हूँ।

वो दरवाजा वापस बन्द करके मेरे साथ अपने कमरे में आ गयी।

वो — (बेड की तरफ इशारा करते हुए) —- बैठो, मैं तुम्हारे लिए पानी लेकर आती हूँ।

उसने फ्रीज़ से पानी की बोतल निकाली और गिलास पे पानी डालकर मुझे दिया। मैंने पानी पीकर गिलास नीचे रख दिया।

वो — और सुनाओ प्रदीप, घर पे सब कैसे है? तुम्हारे माँ बाप, भाई बहन, दादा दादी…??

मैं — सब ठीक है आंटी,आप सुनाइए बच्चे कहीं दिखाई नही दे रहे, और आपने अपना सर क्यों बाँधा हुआ है।

वो — बच्चे स्कूल गए है। बस 2 घण्टे बाद आने ही वाले है। सिर में हल्का हल्का दर्द है।

मैं — चाचा आज, टिफन कैसे भूल गए ?

वो — वो भूले नही है, उनके जाने के वक्त खाना बना नही था। ये देखो कल रात से बहुत तेज़ बुखार है मुझे। अभी भी तुम्हारे आने से पहले लेटी हुई थी।

मैं — (उसके माथे पे उल्टा हाथ लगाकर) — हाँ आंटी बुखार तो अभी भी है आपको। कोई दवाई ली क्या ?

वो — नही अभी तक कुछ नही लिया। खाना खाकर जाउंगी अस्पताल दवाई लेने। तुम्हारे चाचा के पास तो इतना भी समय नही है के दवा वगैरह लाकर दे दे। हर वक्त काम, काम बस काम।

(उसने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा)

मैं — चलो, आंटी मेरे साथ बाइक पे चलो। मैं आपको दवा दिलाकर लाता हूँ। लगभग 10 मिनट का ही तो रास्ता है। कुछ ही पलों में वापिस आ जायेंगे।

वो — ठीक है, लेकिन अभी खाना बनाने दो, बाद में चलेंगे।
मैं — ठीक है।

करीब 20 मिनट में खाना बनकर तैयार हो गया ओर आंटी ने चाचा का टिफन तैयार कर दिया।

मैं — आंटी, आप खाना खालो तब तक मैं चाचा को ढाणी में टिफन देकर आता हूँ।

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