Vijay Aur Uski Malkin Nirmla

Deep punjabi 2016-08-30 Comments

Sex Story

हैलो दोस्तो आपका अपना दीप पंजाबी एक बार फेर आपकी सेवा में एक नई कहानी के साथ हाज़िर है। सो ज्यादा इंतज़ार न करवाते हुए सीधा कहानी पे आते है।

ये राजस्थान के एक छोटे से गांव की कहानी है। जहां भीमा एक गरीब मज़दूर, जो अपनी पत्नी शांति और बेटे विजय के साथ अपने मालिक जमीदार राजेन्द्र सिंह की हवेली के बाहर एक छोटी सी झोपडी में रहता था।

भीमा के पुराने बज़ुर्ग दादा पड़दादा ने कोई बड़ी रकम ज़मीदार साब से ब्याज पे ली थी और वो रकम चुकाने के लिए शुरू से ही ज़मीदार साहिब के खेतो में ही काम करते आये थे और अब तक सिर्फ ब्याज ही बड़ी मुश्किल से चुकता कर पाये थे। मूल वैसे का वैसा वहीँ रुका हुआ था।

भीमा भी उसी रीत को आगे चला रहा था। गरीब होने की वजह से भीमा अपने बेटे विजय को ज्यादा पढ़ा लिखा नही सका और सारा परिवार जमीदार साब की दिन रात चाकरी करता था।

भीमा का बेटा विजय 25 साल का हो चूका था और जब से उसने होश सम्भाला था। खुद और परिवार को जमीदार का गुलाम ही पाया था। जमीदार साब चाहे पैसे से पूरी दुनिया खरीद सकते थे, पर अपने घर में गरीब थे, मतलब खुद के घर उनकी अपनी औलाद नही थी। जिसकी वजह से दोनों मिया बीवी बहुत परेशान रहते थे ।

एक दिन भीमा अपनी झोपडी में बैठा खाना खा रहा था के एक आदमी जो के ज़मीदार साब का संदेसा लेकर आया था, के उन्होंने कही जाना ही जल्दी हवेली में पहुँचो। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।

भीमा ने खाना खाकर 20 मिनट में पहुंचने का बोलकर है उसको वापिस भेज दिया।

(खाना खाकर जब भीमा हवेली गया तो)

भीमा – कैसे याद किया हज़ूर ?

जमीदार – हा तो भीमा, आ गए हो। सुनो मैं कारोबार के सिलसिले में एक महीने के लिए विदेश जा रहा हूँ। तुम और शांति दोनों अपनी मालकिन का ख्याल रखना। उनको समय समय पे दवाइया, खाना देते रहना।

भीमा – जो हुक्म हज़ूर, आप निश्चि्त होकर अपने काम पे जाओ, मालकिन और घर की हिफाज़त की जिम्मेवारी हमारी है।

ज़मीदार –  बहुत बढ़िया !! तुमसे मुझे यही उम्मीद थी।

(और जमीदार साब अपनी गाडी में बैठ कर हवाई अड्डे को तरफ रवाना हो जाते हैं)

उनके जाने के बाद मालकिन अपने कमरे में सो रही होती है तो..

शांति (दरवाजा खटकाते हुए) – मालकिन, दरवाजा खोलिए ! आपके लिए खाना लेकर आई हूँ।

(नींद में ही उठी मालकिन ने दरवाजा खोला और वापिस अपने बैड पे जाकर बैठ गयी )

शांति – लो मालकिन, खाना खालो पहले बाद में आपकी दवाई लेने का समय हो जायेगा।

मालकिन – आज तुम क्यों आई, शांति, बड़े मालिक कहाँ गए है, दिखाई नही दिए सुबह से ?

शांति – क्या बात करती हो मालकिन ? आपको बताकर नही गए क्या ज़मीदार साब ?

मालकिन – (रोटी का निवाला तोड़कर, मुह में डालने से पहले) – क्या मतलब तुम्हारा शांति ??

शांति – मतलब के मालिक ने विजय के बाबू जी को सुबह ही बुलाया था के उनको बाहर बिदेश में किसी काम से जाना था। इसलिए आज मालिक दिख नही रहे यहां।

मालकिन – अच्छा तो ये बात है ?

(खाना खाने के बाद)

शांति तुम ऐसा करो मेरी अलमारी से कपड़े निकाल दो, मुझे नहाकर दवाई लेने अस्पताल जाना है और हाँ आपके मालिक तो है नही यहाँ पे तो आज दवा लेने किसके साथ जाउगी मैं, ऐसा करो विजय को बुला लेते हैं खेत से, उसे गाडी चलाना भी आता है और थोडा पढ़ा लिखा भी है, बाहर के लोगो से बोलने की तमीज़ भी है ! क्या कहती हो शांति ??

शांति – ठीक है मालकिन, जैसी आपकी मर्ज़ी।

(मालकिन मुनीम जी को फोन लगाकर विजय को घर भेजने का कहती है)

करीब आधे घण्टे बाद विजय भी खेत से हवेली आ जाता है। उधर मालकिन भी तैयार होकर बैठी होती है।

विजय – हांजी मालकिन क्यों बुलाया खेत से ?

मालकिन – विजय तुम्हारे मालिक एक महीने के लिए कही बाहर गए हैं तब तक तुम मेरे साथ हर जगह चलोगे, जैसे अस्पताल, कही घूमने या फेर किसी पार्टी में, समझ गए न।

विजय – जो हुक्म मालकिन, अब कहाँ चलना है।

मालकिन – अब हमको शहर के सबसे बड़े अस्पताल में जाना है, दवाई लेने ! जाओ तुम कपड़े बदल कर तैयार हो जाओ, इन कपड़ो में अच्छे नही लगते हो।

विजय – पर मालकिन मेरे पास इससे अच्छे कपड़े नही है।

मालकिन – उफ्फ्फ !!! क्या नई मुसीबत है, ठीक है पहले नहाकर आओ कपड़ो का बन्दोबस्त मैं करती हूँ।

विजय – ठीक है मालकिन।

(करीब आधे घम्टे बाद विजय नहाकर आ जाता है)

मालकिन – ये लो विजय तुम्हारे साब जी के कपड़े है ध्यान से हिफाज्त करना इनकी फटने नही चाहिए, और एक बात किसी को ऐसा न महसूस होने देना के तुम हमारे नौकर हो, हमे आज नए अस्पताल में जाना है। उनसे ऐसे वयवहार करना के तुम ही जमीदार हो, इससे हमारी भी इज्ज़त बनी रहेगी।

विजय – ठीक है मालकिन !!

(विजय उन कपड़ो को पहन कर खुद ज़मीदार साब लग रहा था)

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