Bhoot To Chala Gaya – Part 6

iloveall 2017-05-09 Comments

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मेर पति ने हाथ का झटका देते हुए कहा, “तुम बकवास कर रही हो। न तो तुमने और न तो समीर ने कुछ भी ऐसा किया की जो पश्चाताप या डाँट के काबिल था। तुमने समीर को ब्लाउज में हाथ डालने के लिए इसलिए कहा की तुम्हारे ब्रा में चूहा घूस गया था। और समीर ने भी इसीलिए तुम्हारे ब्रा के अंदर हाथ डाला।

जब दो जवान स्त्री और पुरुष ऐसी स्थिति में होते हैं तो ऐसा हो जाता है, उसमें न तो तुम्हारा और न तो समीर का कोई दोष है। पुरुष और स्त्री के बिच का आकर्षण भगवान् की दी हुई भेंट है। जब तक तुम्हें ऐसा न लगे की किसीने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है या तुम्हें निचा दिखानेकी कोशिश की है तब तक तुम इसको ज्यादा महत्त्व न दो। बल्कि ऐसी हरकतों को एन्जॉय करो। हमेश याद रखो ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो।”

मुझे बहुत अच्छा लगा की मेरे पति राज ने मुझे डांटा नहीं और मेरे या समीर के वर्तन को नकारात्मक रूप में नहीं लिया। उन्होंने मेरी दुविधा को समझा और मेरे मनमंथन को ख़तम कर दिया। उनकी समझ बूज़ की मैं कायल हो गयी। बल्कि मुझे ऐसा लगा जैसे वह मुझे प्रोत्साहन दे रहे हों। खैर, मुझे अच्छा लगा की मेरे पति मुझे समझ रहे थे। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

उस प्रसंग और मेरे पति के साथ बात करने के बाद मेरे और समीर के बिच में काफी कुछ बदल चुका था। मैं जब समीर के करीब होती थी तो मेरे पुरे बदन में एक नयी ऊर्जा और उत्तेजना का अनुभव होता था। मैं अपने आपको फिरसे नवयुवा महसूस कर ने लगी थी।

मुझे समीर के बदन की महक, उसके होठों की चमक, आँखों में छिपी लोलुपता, उन का मेरे स्तनों को दबाना और सहलाना, मेरी साडी पर से मेरी गांड की दरार में उंगली घुसेड़ने की कोशिश करना इत्यादि याद करते ही मैं रोमांचित हो जाती थी और मेरी चूत में से पानी निकलने लगता था। समीर जब भी मुझे ललचायी नज़रों से देखते या मेरे वेश की प्रशंशा करते तो मैं शर्म के मारे पानी पानी हो जाती। बल्कि मुझे इंतजार रहता था की समीर को मेरी पहनी हुई ड्रेस पसंद आये।

मैं समीर की पसंदीदा वेश पहनने के लिए आतुर रहती थी। अगर कभी कोई ख़ास ड्रेस उसे पसंद आता था तो मैं उसे पहन ने में मुझे बड़ी ख़ुशी होती थी। पहले मैं किसी भी तरह के भड़कीले वेश पहनना पसंद नहीं करती थी। पर समीर कहता तो मैं पहनकर आती थी।

साथ साथ में मेरे मनमें एक डर भी था। मेरा मन मुझे सावधान कर रहा था की इस रास्ते पर आगे खतरा हो सकता है। पर मैं बदल चुकी थी। मुझे समीर का साथ अच्छा लगता था और उसकी छेड़खानी और सेक्सी टिकाएं मुझे नाराज करने के बजाये उकसाती थीं।

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मेरे लिए वह एक बुरा दिन था। पिछली रात को मैं ठीक से सो नहीं पायी थी। मेरे पति राज उस हफ्ते टूर पर थे। मुझे रात को बुरे सपने आये और अकेले में कुछ भी आवाज होते ही मैं डर जाती थी। सुबह का ट्रैफिक पागल करने वाला था। मेरी तबियत ठीक नहीं थी। ऑफिस पहुँचने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी। एक खचाखच भरी हुई बस में कितनी सारी बसें छूटने के बाद घुसने का मौका मिला। इतने सारे लोगों के बिच मेरा तो जैसे कचुम्बर ही निकल गया। समीर का मूड भी ठीक नहीं था। उसकी छुट्टी बॉस ने कैंसिल कर दी थी। समीर गुस्से में था।

मेरा पूरा दिन काम में बिता। दुपहर को देर से बॉस आये और एक दूसरे ग्राहक के लिए फिर मुझे उसी तरह की रिपोर्ट बनाने के लिए कहा। काम ज्यादा नहीं था पर मुझे जरूर देर तक बैठे रहना पड़ेगा। मैं तुरंत काम में लग गयी। समीर ने जब मुझे गंभीरता पूर्वक काम में लगे हुए देखा तो मेरे पास आये। जब उन्होंने मुझे पूछा तो मैंने सब बातें बतायी। उन्होंने पाया की वह तो उन्हीं का ग्राहक था। उन्होंने कुछ कागज़ अपने हाथ में लिए और मेरे साथ काम में लग गए।

मुझे कड़ा सरदर्द हो रहा था। बाहर विजली के कड़क ने की और बादलों के गरज ने की आवाज आ रही थी। छे बजे ही पूरा ऑफिस खाली हो चुका था। झमाझम बारिश शुरू हो गयी थी। हम जब काम ख़तम कर के बाहर आये तो साढ़े सात बज चुके थे। पिछले तीन घंटों से मुश्लाधार बारिश हो रही थी और लगता था की पूरी रात बारिश नहीं रुकेगी। जैसे तैसे हम पुरे भीगे हुए समीर की बाइक के पास पहुंचे। हमारे पास न तो कोई रेनकोट था और न ही कोई छाता।

समीर ने बाइक शुरू किया और मैं पीछे बैठ गयी। समीर ने अपनी गोद में एक ब्रीफ़केस ले रखी थी। इस कारण मुझे अपने हाथ समीर की जांघों के बिच रखने पड़े। मैं थोड़ी आगे झुकी तो मेरी दोनों चूचियां समीर की पीठ पर दबी हुई थीं। मुझे अजीब भी लग रहा था और एक तरह का रोमांच भी हो रहा था। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

बाइक पर बैठने से तेज हवा मेरे गीले बदन को और ठंडा कर रही थी। मुझे जुखाम हो गया और मैं छींके खा खा कर परेशान हो गयी। दुर्भाग्य वश समीर की बाइक एकाध किलो मीटर चलने के बाद खराब हो गयी। हमने बाइक को धक्के मार कर बड़ी मुश्किल से एक पार्किंग लोट में खड़ी की। वहां से नजदीकी बस स्टैंड पर हम पहुंचे और बस या टैक्सी का इंतजार करने लगे। बसें भरी हुई आती थी और बीना रुके निकल जाती थी। मैं रास्ते तक जा करके कोई टैक्सी खाली मिले तो रोकने के प्रयास कर रही थी, पर सारी टैक्सियां भरी हुई आरही थी।

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