Badi Mushkil Se Biwi Ko Teyar Kiya – Part 17

iloveall 2017-02-18 Comments

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आखिर में हमारी शादी हमारे माता पिता की सम्मति से धूमधाम से हो गयी। शादी के पहले तीन चार सालों में हमने खूब सेक्स किया। खूब मजे किये। अनिल का ज्यादा सेक्सी होना मुझे बहोत अच्छा लग रहा था। उस के साथ साथ मैं भी सेक्स का पूरा आनंद ले रही थी।

मुझे उन दिनों समझ में आया की सेक्स कितना आनंद दायक हो सकता है। आज भी उन दिनों की यादें मेंरे पुरे बदन में जैसे एक अजीब सी सिहरन पैदा कर देती है। जब हमारी बेटी गुन्नू हुई तब से हमारे सेक्स जीवन में थोड़ा परिवर्तन आना शुरू हो गया। मेरी बेटी जैसे मेरी पूरी जिम्मेदारी बन गयी।

मेरी बेटी पैदा होने के बाद जैसे हमारे जीवन का केंद्र बिंदु बन गयी थी। जो ध्यान और प्यार मैं दिन रात मेरे पति अनिल पर न्योछावर करती थी वह अब अनायास ही मैं मेरी बेटी पर करना पड़ रहा था। पुरे दिन उसकी पेशाब, टट्टी, खाना खिलाना, स्तन पान, उसकी शर्दी, खांसी, उसको सुलाना, उठाना, उसको साफ़ करना उसके साथ खेलना इत्यादि में मुझे मेरे पति के लिए समय निकालना बड़ा मुश्किल सा लग रहा था..

अनिल भी हमारी बेटी के पीछे पागल था। उसको थोड़ी सी भी असुविधा होने पर वह बड़ा विचलित हो जाता था। मैं बेटी के लालन पालन के बाद शाम को थक कर ढेर हो जाती थी। मुझे पति को प्यार करना, मैथुन इत्यादि के बारेमें सोचनेका भी समय कहाँ था? चूँकि अनिल अपने काम में और जॉब में व्यस्त रहते थे, मेरी बेटी मेरी पूरी जिम्मेदारी बन चुकी थी।

मुझे मेरा जॉब छोडना पड़ा था। बेटी की परवरिश में मेरा सब कुछ छूट गया। मैं अनिल को उतना समय नहीं दे पाती थी जितना उसको देना चाहिए था। पर में क्या करती? बच्चे बड़े अतृप्त होते हैं। वह हमेशा कुछ न कुछ मांगते रहते हैं। और माँ को उसकी मांग को पूरा करना पड़ता है। पर इस चक्कर में हम पति पत्नी एक दूसरे से दूर होने लगे।

अनिल मुझ से बहोत सहयोग करने की कोशिश कर रहा था। पर उसकी जॉब, टूर और व्यस्तता के कारण वह ज्यादा कुछ कर नहीं पाता था। उसे जब चोदने का मन करता था तब मैं काम से थकी हारी होती थी और उसका साथ न दे पाती थी। फिर भी मैं उसकी मज़बूरी समझ कर कई बार मन न करते हुए भी अपनी टाँगे फैला कर उसे चोदने की जरुरत को पूरी करने की कोशिश करती थी। अनिल इस पर बड़ा दुखी हो जाता था। पर मैं भी मजबूर थी। यहां एक तथ्य को समझना पड़ेगा।

स्त्रियों का शरीर पुरुषों से अलग होने के कारण उनकी मानसिकता भी पुरुषों से अलग होना स्वाभाविक है। स्त्रियां साधारणतः अन्तर्मुख होती हैं। अर्थात वह अपनों के विषय में ज्यादा सोचती हैं। भगवान ने स्त्रियों को एक विशेष जिम्मेदारी देने के लिए प्रोग्राम किया है। वह है सविशेष ममत्व और संवेदनशीलता। ममत्व का अर्थ है जो अपने हैं उनकी इतनी लगन से परवरिश करनी की वह व्यक्ति पनप सके। संवेदनशीलता का दुसरा नाम है सहन शीलता। संवेदन शीलता का अर्थ है अपनों के प्रति नरमी और धैर्य रखना। अपने चारों और के वातावरण में नमी अथवा प्रेम उत्पन्न करना। कई बार इतनी कुर्बानी देने के बाद स्त्री फिर उस पात्र पर अपना अधिकार भी जताने लगाती है। जहां तक ममत्व का सवाल है स्त्रियां पुरुषों से कहीं आगे हैं।

मैं इतना दावे के साथ कह सकती हूँ की स्त्रियां पुरुषों से स्वभावगत ज्यादा जिम्मेदार होती हैं। परंतु शायद पुरुष स्त्रियोंकी विशेषता इस लिए समझ नहीं पाते क्योंकि भगवान ने पुरुषों की प्रोग्रामिंग अलग तरीके से की है। पुरुषों का व्यक्तित्व साधारणतः बहिर्मुख होता है। वह बाहरी विश्व के साथ सविशेष रूप से जुड़ना चाहते हैं। वह अपनों की सविशेष रक्षा कैसे हो उसमें ज्यादा रूचि रखते हैं।

मैं यह मानती हूँ की यह एक सामान्य विश्लेषण है। हर अवस्था में यह लागू नहीं होता। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..

यह उस समय की बात है जब हमारी बेटी गुन्नू करीब चार सालकी हो चुकी थी। अब वह अपने आप काफी कुछ कर लगी थी और मुझे उसके पीछे पहले की तरह भागना नहीं पड़ता था। पर मैं अनुभव कर रही थी, की बीते तीन सालों के कड़वे अनुभव और अलगता के कारण अनिल का मन मुझसे कुछ ऊब सा गया था। हम साथ में सोते तो थे, पर तब पहले की तरह अनिल का मुझे अपनी बाहों में लेकर सोने का जो पहले वाला जोश था वह जैसे ख़त्म हो गया था। अनिल की मानसिक अवस्था को समझते हुए भी मुझे अनिल का यह व्यवहार आहत करता था।

रात को वह मुझ से दुरी रखने लगा और मुड़कर सो जाता था। वह मुझसे सेक्स के लिए उतना उत्साहित नहीं हो रहा था। हमारी सेक्स की मात्रा एकदम घट गयी थी। वैसे मुझे भी तब अनिल के साथ सेक्स करने में वह आनंद नहीं आ रहा था। क्योंकि हम पति पत्नी थे, एक साथ सोते थे और क्योंकि हमारे पास कोई विकल्प नहीं था इस लिए कभी कभी चोदना हमारे लिए जैसे एक आवश्यक मज़बूरी बन गयी थी।

हम उसी मानसिक हालात में थे जब अनिल की पोस्टिंग जयपुर में हुयी और हमारी मुलाकात राज और नीना से हुई। जैसे ही मेरे पति अनिल ने उसके ही साथीदार राज की सुन्दर कमसिन पत्नी नीना को देखा तो मैंने महसूस किया की अनिल उसपर जैसे लट्टू हो गया था। मैं देख रही थी की उसकी आँखें नीना की छाती और उसके कूल्हे के उतार चढ़ाव पर से हटने का नाम नहीं ले रही थी।

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