Badi Mushkil Se Biwi Ko Teyar Kiya – Part 18

iloveall 2017-02-21 Comments

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राज ने कस के मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया। सकड़ी जगह में राज की और मेरी कमर जैसे ही एक दूसरे से सट गयी की उसका खड़ा कड़ा लन्ड मेरे पाँव के बिच टक्कर मारने लगा। तब मैं अपने आप को नियत्रण में रख सकने में असहाय पाने लगी और मैं इतनी डर गयी की एकदम वहाँ से भागी और बाहर निकल कर एक तौलिया बदन पर लपेट कर एक और तौलिया के साथ अनिल का एक जोड़ी कुर्ता पजामा राज के लिए मेरे हाथों में लेकर बाथरूम के बाहर ही खड़ी रही।

राज की वह प्यासी भूखी नजर मेरे ह्रदय को चिर गयी थी। मैं राज को दोषी कैसे मानूँ? मेरा हाल भी तो बेहतर नहीं था। राज का हाल देखकर मैं भी तो कामातुर हो रही थी। मेरा आधा मन मुझे उस पराये पुरुष की बाहोँ में जाने के लिए झकझोर रहा था और मेरा दिमाग वहाँ से दूर जाने के लिए कह रहा था। मैंने अपनी कामातुरता पर जैसे तैसे नियत्रण किया।

शायद मेरे बाहर की और भागने से राज को होश आया की वह क्या करने जा रहा था। वह अंदर ही अंदर अपने आपको गुनाहगार महसूस करने लगा होगा क्योंकि वह अपना मुंह बाहर निकाल कर मुझसे माफ़ी मांगने लगा। वह कहने लगा, “अनीता, प्लीज मुझे माफ़ कर देना। मैं बहक गया था। प्लीज मुझे माफ़ कर दो और अनिल से मत कहना।”

मैंने जवाब में अपनी हंसी रोकते हुए कहा, “चलो भाई, बाहर निकलो। मैं अनिल से यह सब बता कर अपने लिए थोड़े ही मुसीबत खड़ी करुँगी? क्या मैं तुम्हें तौलिया दे दूँ?” यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..

तब राज ने कहा की वह नलके को ठीक कर के ही फिर कपडे बदलेगा। थोड़ी ही देर में राज ने नलका ठीक किया। जैसे ही पानी का फव्वारा बंद हुआ, मैंने बाथरूम का दरवाजा खोला और राज को तौलिया दिया। राज ने मेरी और देखा तो उसका चेहरा देख कर कुछ क्षणों के लिए मुझे राज पर तरस आ गया। मैं उसके मन के हाल भली भाँती समझ पा रही थी। यदि उस समय मेरी जगह नीना होती और राज की जगह मेरा पति होता तो क्या होता यह मैं भली भाँती कल्पना कर सकती थी।

तब अनिल नीना को अपनी बाहों में ले लेता और नीना को उतना उकसाता, तर्क वितर्क करता और अपनी सारी शक्ति उस को मनाने में लगा देता। नीना अनिल की बांहों में आ ही जाती। आखिर में येनकेन प्रकारेण वह उसे चोदने के लिए राजी कर ही लेता और उसे चोदे बगैर छोड़ता नहीं। अनिल की स्त्रियों को ललचाने की क्षमता के बारे में मुझसे अधिक भला और कौन जानता था?

पर राज अनिल नहीं था। राज ने बाथरूम में ही अपने कपडे बदले और फिर बाहर आया। उस कुछ क्षणों की नाजुक अवस्था के बाद राज ने मुझसे और किसी भी तरह का अनुग्रह नहीं किया। मुझे ऐसा लगा जैसे वह सोच रहा था की मैं उसे पसंद नहीं करती और इसी लिए बाथरूम से भाग निकली। उसका चेहरा निराशा से घिरा हुआ था। मेरे मन में उसका चेहरा देख एक टीस सी उठी। मेरा मन तो करता था की मैं उसकी बाहोँ में लिपट जाऊं और उसे कहूँ की मैं भी उसकी तरह ही सेक्स की भूखी और प्यार की प्यासी हूँ। पर मैंने अपने आप को सम्हाला। उस समय यदि मैं थोड़ी सी भी डगमगा जाती तो उस रात मेरा राज से चुदना तय था। तब न मैं उसको रोक पाती न वह अपने आप पर नियत्रण कर पाता।

उस रात को मैं राज की इतनी कृतज्ञ हो गयी की नलका ठीक होने के बाद मैंने उसे बिना सोचे समझे कहा, “मैं इतनी रात गए आपको डिस्टर्ब करने के लिए माफी चाहती हूँ। आपने आकर यह नलका ठीक कर मुझ पर बड़ा उपकार किया है। पता नहीं मैं उसका ऋण कैसे चुका पाउंगी। राज प्लीज आपका मैं यदि कोई भी काम कर सकूँ तो वह मेरा सौभाग्य होगा। मुझसे बिना झिझक आप कुछ भी मांगिये गा। मैं पीछे नहीं हटूंगी।“

उस समय मैं शायद अपने गुप्त मन में चाहती थी की राज मुझे अपनी बाहों में जकड ले और मुझे छोड़े ही न। ऐसी हालात मैं अगर वह मुझको चोदने की इच्छा प्रगट करता तो मैं शायद मना नहीं कर पाती। बादमें मुझे बड़ा अफ़सोस होने लगा की मैं भी बड़ी बेवकूफ निकली की मैंने ऐसा वचन दे दिया। कहीं राज ने गलत सोच लिया होता और वह मुझसे कुछ ऐसी वैसी मांग करता तो मैं क्या जवाब देती? उस समय मेरा हाल ऐसा था की यदि राज कुछ भी कर लेता तो मैं विरोध न करती।

मेरी मनोदशा का यदि सही विश्लेषण करें तो पता नहीं पर कहीं न कहीं मुझे शायद मन ही मनमें यह भी अफ़सोस हुआ होगा की आखिर राज ने मुझसे सेक्स करनेका वचन उसी समय क्यों नहीं माँगा? यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..

जब राज जाने लगा तब मैं उसके साथ साथ चली और चलते चलते जाने अनजाने (शायद जान बुझ कर) मेरे बूब्स उस की बाँहों से बार बार रगड़ने लगे। मैं जानती थी की राज बेचारा मेरे स्तनों का स्पर्श पाने के लिए कितना उत्सुक था। उसके लिए मैं उतना तो कर ही सकती थी। यदि उसकी जगह मेरा ठर्कु पति होता तो पता नहीं वह क्या नहीं करता। परंतु राज ने कुछ नहीं किया। तब मुझे ऐसा लगा की हर मर्द मेरे पति की तरह ठर्कु नहीं होता। मेरे मन में राज के प्रति सम्मान और विश्वश्नियता का भाव हुआ।

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