Bhoot To Chala Gaya – Part 9

iloveall 2017-05-15 Comments

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ऐसा कहकर मैंने समीर को अपने करीब खींचा और उसे लिपट गयी और काफी लम्बे समय तक लिपटी रही और फिर उसके होठों के एकदम करीब उसके गाल पर मैंने एक गहरा चुम्बन किया। मैं इतनी आवेश में थी की मेरा मन किया की मैं समीर के होंठ चुम लूँ। पर मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप को नियत्रण में रखा। बेस्ट हिन्दी चुदाई कहानी देसी टेल्स

मैंने जब समीर के गाल चूमे तो समीर की शक्ल देखने वाली थी। वह काफी समय तक अजीब ढंग से बिना कुछ बोले वहीं पर बैठा रहा। थोड़ी देर बाद समीर ने कहा, “जब तुम सो रही थी तब राज का एक बार फ़ोन आया था। राज को मैंने तुम्हारी तबियत के बारे में बताया और कहा की तुम उस वक्त सो रही थी। तब राज ने मुझे कहा की वह एक घंटे बाद फ़ोन करेगा। राज ने मुझे यहीं रुक जाने को भी कहा। पर मैंने उसे कहा की देर रात हो चुकी थी और मुझे घर जाना चाहिए। तब राज ने जब तक तुम उठ न जाओ तब तक मुझे रुक ने के लिए कहा। अब तुम उठ गयी हो तो फिर मुझे जाना चाहिए।”

ठीक उसी वक्त मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी। मैंने समीर को बैठने का इशारा किया। वह मेरे पति राज का फ़ोन था। राज ने मेरी तबियत के बारें में पूछा. उसे मेरी चिंता हो रही थी। मैंने कहा की समीर मेरे साथ ही था और मुझे बेहतर लग रहा था। मैंने यह भी कहा की समीर जाना चाहता था। तब राज एकदम गुस्सैल हुए और मुझे फ़ोन समीर को देने के लिए कहा। जब समीर राज से बातें करने लगे तो मुझे लगा की राज समीर को खूब डाँट रहे थे और समीर के मुंह से जवाब में आवाज भी नहीं निकल रही थी। समीर की शकल खिसियानी लग रही थी।

थोड़ी देर बाद समीर ने फ़ोन बंद किया और बोले, “लगता है आज मेरा डाँट खाने का ही दिन है। तुमसे डाँट खाने के बाद तुम्हारे पति ने भी मुझे झाड़ दिया और मुझे कह दिया की अब मुझे घर नहीं जाना है और यहीं तुम्हारे साथ ही रहना है। मुझे समझ में नहीं आता की मैं क्या करूँ?” यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

मैं समीर की बात सुन कर हंस पड़ी और बोली, “तो तुम यहां से जाने के लिए क्यों अड़े हुए हो? और फिर इतनी तेज बारिश में इतनी रात गए तुम जाओगे कैसे? तुम्हारी कोई गर्ल फ्रेंड वहां तुम्हारा इंतजार कर रही है क्या, जो ऐसे जिद पकड़ के बैठे हो? मैं तुम्हें खा नहीं जाउंगी। तुम जाकर के ड्राइंग रूम में सो जाओ। ”

समीर ने कहा, “जब तुम सो रही थी तो मैंने खाना तैयार कर लिया है। अब तुम्हें खाना बनाने की जरुरत नही है।” ऐसा कह कर समीर ने चावल चपाती और कुछ सब्जी एक प्लेट में मेरे सामने रख दी।

मेरा खाने का मन नहीं था। पर समीर ने अपने हाथों से जबरदस्ती मुझे यह कह कर खिलाया की खाली पेट में दवाइयों का बुरा असर पड़ेगा। समीर और मैंने चुपचाप थोड़ा खाया। समीर ने फिर प्लेट्स हटाकर किचन के बेसिन में साफ़ कर दी और वापस मेरे पास आ गये।

मेरा शर्दी और जुखाम कम हो गया था, पर बदन टूट रहा था , मेरे कांधोंमें और पाँव में सख्त दर्द हो रहा था। मैंने दो हाथों में अपना सर पकड़ा समीर की और देखा। मुझे कपकपी सी आ रही थी। शायद बुखार भी था। समीर ने देखा की मैं कष्ट महसूस कर रही थी। समीर ने तुरंत मुझे पलंग पर लिटाया और मुझे चद्दर ओढ़ाई। समीर ने मेरे सर पर हाथ रख कर मेरा तापमान चेक किया। शायद मुझे थोड़ा बुखार था। मेरी ऑंखें लाल हो रही थी और नींद आ रही थी। समीर ने मुझे “पैरासिटेमोल” दवाई दी और मुझे लेटने को कहा।

मैंने समीर की और देख कर कहा, “रुकने के लिए धन्यवाद। अगर तुम चले गए होते तो मुझे दिक्कत होती।”

समीर ने कहा, “ठीक है, पर बस अब मैं यहीं हूँ और कहीं जाने वाला नहीं हूँ। अब तुम आराम करो और अगर तुम्हें कोई भी चीज़ की जरुरत हो तो मैं यहाँ ही बैठा हूँ।”

मैंने समीर का हाथ पकड़ा और मैंने लेटने की कोशिश की पर मेरी पीठ में बहुत दर्द हो रहा था। मैंने अपने कन्धों को अपने अंगूठों से दबाने की कोशिश की जिससे थोड़ा आराम मिल सके। समीर ने देखा की मुझे कन्धों में दर्द हो था तो उसने मुझे बैठाया और ऐसे घुमाया जिससे मेरी पीठ उस की तरफ हो। फिर उसने अपने दोनों हाथ मेरे कंधे पर रख कर अपने अंगूठे से मेरे कन्धों की रीढ़ को जोरों से दबाया। शुरू में तो मुझे दर्द हुआ। परन्तु कुछ समय बाद मुझे बेहतर लगा और आराम हुआ। मैंने समीर से कहा, “”सही है, ठीक लग रहा है। जारी रखो। ”

समीर ने मुझे अपनी और खींचा और कहा, “तुम थोड़ा और करीब आ जाओ जिससे मैं तुम्हारे कन्धों को ठीक तरह से दबा सकूँ।”

मैं और कितना पीछे खिसक सकती थी? मेरे कूल्हे तो समीर के पाँव से सटे हुए ही थे। समीर अपने पांव की गुथ्थी मार कर बैठा हुआ था। समीर ने मुझे मेरी बगल में हाथ डालकर ऊपर उठाया जिससे मैं कूल्हों को थोड़ा उठाकर समीर की गोद में जा बैठूं। अब समीर का हाथ आराम से मेरे कन्धों की पसलियाँ को ठीक से दबा सकता था। उस शाम यह दूसरी बार मैं समीर की गोद मैं बैठ रही थी। मैंने एक बार सोचा भी की मैं उसका विरोध करूँ, पर क्या फायदा? मैं एक बार पहले भी तो अपनी ही मर्जी से उसकी गोद में बैठ गयी थी!

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